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और ईश्वर से सम्पर्क होने के बाद, हम अपना सम्पूर्ण जीवन चमत्कारों से भरा हुआ पाते हैं, और सबकुछ एक चमत्कार की भांति होगा; हर चीज की देखभाल की जाएगी; हर चीज बहुत ही प्रेममय हो जाएगी, बहुत ही भ्रातृत्वपूर्ण। और हमारी आत्माएं ऐसी शांति को पा लेगी जो हम उस क्षण तक जानते नहीं थे। इस कारण के लिए, प्राचीन काल से ही, हमारे अनेक संत और साधु सम्पूर्ण संसार से विरक्त हो चुके हैं अंदर की महिमा के कारण, ईश्वर को पाने में उसको संतुष्ट करने के लिए कि वे बहुत महसूस करते है। उन्हें इस संसार में किसी की आवश्यकता नहीं होती। किन्तु उसका मतलब यह नहीं है कि वे इस संसार में काम नही कर सकते। वास्तव में, वैराग्य का अर्थ संसार से दूर भागना नहीं होता है। यह है केवल त्याग है या हो सकता है सांसारिक जीवन को किसी बडे उद्देश्य के लिए समर्तित करना चाहते हैं लोगों का, या सम्पूर्ण संसार की सेवा करने के लिए, यदि हम ऐसा करने हेतु स्वतंत्र हैं। क्योंकि ईश्वर को जानने के बाद, ज्ञान प्राप्त कर लेने के बाद जो सदैव हमारे अंदर विद्यमान होता है, हम संसार की बेहतर रूप से सेवा कर सकते हैं। हमारे अंदर अनेक क्षमताएं जागृत अवस्था में होती हैं, अनेकों प्रतिभाओं की सम्पुष्टि हो चुकी है, अनेको विभिन्न प्रकार दायरे वाले उपाय समस्याओं के समाधान के लिए इस संसार में कि हम बहुत व्यस्त हो जाएंगे, किन्तु इसे हर किसी के साथ बांटने को आतुर जो हमारे पास सहायता हेतु आते हैं।