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जितना कम हम ईश्वर को देखते हैं, उतना ही कम प्रेम हमारी आत्मा में, हमारे हृदय में होता है। और हमारे पास जितना कम प्रेम होगा, उतनी ही अधिक संभावना होगी कि हम ठोकर खाकर गिर पड़ें। और तब समाज हमें पकड़ लेगा और हमें कहीं अँधेरे में, सीमित कर देगा, अधिक प्रेम से रहित। प्यार भी पहले से कम। तब लोगों को समाज पर गुस्सा आने लगता है। […] ईश्वर में उसका पहले से जो भी विश्वास था, वह शायद पहले ही खो चुका है। इसलिए मुझे इंसानों पर तरस आता है।