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उनके शरीर को एक बड़े संदूक में रखकर शहर के बाहर ले जाया गया और एक पुजारी के बगीचे में दफना दिया गया। जौ के बीज बिखेरकर दफन स्थल के चारों ओर दीवार बना दी गई तथा चौबीसों घंटे पहरेदार तैनात कर दिए गए। 40 दिनों के बाद कब्र खोदकर निकाली गयी। ठंड के बावजूद हरिदास का शरीर 40 दिन पहले जैसा नहीं रहा।