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एक बार जब हम ईश्वर के राज्य को पा लेते हैं, तो हम उन्हें फिर कभी नहीं खोते, और बाकी सब कुछ हमारे आदेश पर होता है। इसलिए, बुद्ध ने पृथ्वी का राज्य त्याग दिया था; इसलिए, (भगवान) यीशु ने यहूदियों का राजा बनने से इनकार कर दिया - मेरा मतलब है आधिकारिक तौर पर। उनके शिष्यों और अनुयायीयों उन्हें यहूदियों का राजा बनाना चाहते थे। लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। उन्होंने कहा, “मेरा राज्य पृथ्वी पर नहीं है। मेरा राज्य स्वर्ग में मेरे पिता के पास है।” और उन्होंने सभी को यह भी सलाह दी कि, “अपना खजाना पृथ्वी पर नहीं, स्वर्ग में रखो।” क्योंकि यहां, चीजें क्षतिग्रस्त और नष्ट हो जाएंगी।” उनका मतलब था कि हमें अपना पूरा ध्यान, अपना पूरा प्रेम, ईश्वर को पाने के लिए, ईश्वर को देना चाहिए। प्रेम करो अपने ईश्वर से अपनी पूरी आत्मा, अपनी पूरी बुद्धि, अपनी पूरी शक्ति से।लेकिन बाइबल की इन सभी उक्तियों को समझना कठिन है। इसलिए, बाइबल कहती है, “देखकर आप देखोगे, पर समझ नहीं कर पाओगे; सुनकर आप सुनोगे, परन्तु समझोगे नहीं।” ऐसा क्यों? हममें से अधिकांश लोग जब बाइबल पढ़ते हैं तो हम केवल शब्दावली ही पढ़ते हैं, और हम बाइबल के वास्तविक प्रभाव को भी नहीं समझते हैं। इसके अलावा, बाइबल में कभी-कभी विरोधाभासी कथनो होते हैं और वे लोगों को भ्रमित करते हैं। लेकिन मैं यह नहीं मानती कि बाइबल विरोधाभासी है।मैं बाद की पीढ़ियों के अपनिर्वचन में, उन व्याख्याकारों के अहंकार में मानती हूँ जो विषय पर आगे गहन अध्ययन किए बिना और बाइबल के सच्चे अर्थ पर मनन किए बिना, इसे अपने विचार और अपनी समझ के अनुसार व्याख्या करना चाहते हैं। उदाहरण के लिए, पुराने नियम के पहले अध्याय में ईश्वर ने कहा, "मैंने खेतों में सभी जड़ी-बूटियाँ और सभी फलों के सुंदर पेड़ बनाएं; ये आपका ‘आहार’ होंगे। तो, इस अर्थ में मांस का मतलब है भोजन, केवल भोजन। इसका मतलब मांस से नहीं है जैसा कि हम आजकल खाते हैं, जैसे (पशु-लोग) बीफ स्टेक, या (पशु-लोग) पोर्क चॉप और और क्या नहीं। क्या ऐसा नहीं है? (जी हाँ।) जी हाँ। […]इसके अलावा, उदाहरण के लिए भारत में, एक प्रकार की मिठाई होती है - बहुत मीठा, छोटी, बहुत मीठी। वे इसे स्वीटमीट कहते हैं। आपमें से जो लोग भारत गए होंगे, उन्होंने इन्हें खाया होगा और जानते होंगे कि मेरा क्या मतलब है। स्वीटमीट। और अब अगर हम इसे अपनी भाषा में अनुवाद करें तो यह हो जाता है मीठी चीज - इसका मतलब है “आहार (भोजन) जो मीठा हो।” और यदि हम यह नहीं जानते, और यदि हम कभी भारत नहीं गए हैं, या यदि हम वास्तव में यह समझने की परवाह नहीं करते हैं कि इसका क्या अर्थ है, तो हम इसे मांस के रूप में कर देते हैं। […]तो फिर आप जानते हैं कि मेरा क्या मतलब है। तो अब, दो हज़ार साल पहले, आप जानते हो इसका क्या अर्थ है। जब यह बदल गया, जब एक शब्द पहले से लेकर पंद्रहवें या पचासवें व्यक्ति तक एक ही कमरे में एक ही समय में, कुछ ही मिनटों के भीतर बदल गया, तो आपको क्या लगता है कि दो हजार वर्षों के बाद कई हजार शब्दों अपनी शुद्धता और मौलिकता को कैसे बनाए रखेंगे?अतः, यह हमारे लिए बहुत दयनीय है कि हम इस प्रकार के अंधकार में भटकते रहें तथा मनुष्यों द्वारा व्याख्या किए गए ईश्वर के सटीक अर्थ को जानने का प्रयास करें। तो, एकमात्र बात यह है कि हमें यह चुनना है कि क्या तर्कसंगत है - प्रयास करना है। आत्मज्ञान के लिए प्रार्थना करने में अपनी पूरी शक्ति और ईमानदारी का प्रयोग करें – कम से कम, बाइबल से सही अर्थ और सही पाठ के लिए प्रार्थना करें। और भगवान से प्रार्थना करें कि हम केवल सही वाला ही चुनें। […]जब मैं छोटी थी तो मैं बहुत प्रार्थना करती थी। मेरा मतलब है, मैं अभी भी जवान हूं। लेकिन जब मैं ज्यादा छोटी थी, मैं हर दिन भगवान से प्रार्थना करती थी। मैं हर दिन बाइबल के साथ सोती थी मुझे इस तरह से अच्छा महसूस हुआ। जब मैं औलक (वियतनाम) में थी, तो मैंने बौद्ध बाइबिल के साथ प्रार्थना की, और जब मैं यूरोप में थी, तो मेरे पास कोई बौद्ध बाइबिल नहीं थी, इसलिए मैंने कैथोलिक बाइबिल के साथ प्रार्थना की। और मैं हर दिन कम से कम एक अध्याय पढ़ती हूं। और जब मैं चर्च जाती थी, तो मैं किसी और चीज़ के लिए प्रार्थना नहीं करती था, सिवाय इसके कि, "हे ईश्वर, यदि आप मौजूद हैं, तो मुझे दिखाइए।" बस इतना ही। “मुझे आपको जानने दें। अपने आप को मुझे दिखाओ।” मैंने कभी किसी चीज़ के लिए प्रार्थना नहीं की। मैंने बुद्ध से भी यही प्रार्थना की: “यदि आप सचमुच में मौजूद हैं, तो कृपया मुझे दिखाइए कि आप कहां हैं।” बस इतना ही। तो, शायद इसी प्रार्थना और ईमानदारी के कारण, मैंने ईश्वर को जाना है, मैंने बुद्ध को जाना है। खैर, अब हम अच्छे दोस्त हैं। […]